पत्रकारिता सदाचार बलिदान कर्म त्याग के बंधनो से बंधी होती हे दरअसल कांटो से भरी ये वो राह जहां पर हर कदम पर परिक्षा होती है

पत्रकारिता सदाचार बलिदान कर्म त्याग के बंधनो से बंधी होती हे दरअसल कांटो से भरी ये वो राह जहां पर हर कदम पर परिक्षा होती है सच क‍ा साहस है,सद्भावना कि परिक्षा हे, ये वो तिलस्मी दु‌निया हे जो उत्सुकता कोतुहल जिज्ञासा से भरी पडी है,दरअसल पत्रकार बियाबान मे खड़े उस वटवृक्ष कि मानिंद है जो मीठे ताज़े फल,साफ सुथरी हवा छांव प्रदान करता हे। लेकिन उस कलमकार ओर कलम कि जड़ो को पानी देने वाले विभाग के मज़े भी हैं यहां जनसंपर्क के नागपुरी  कानुन बनाते हैं यह पत्रकारों कि एनआरसी भी कर रहैं ओर दुसरा पुर्न निरिक्षण जेसा सीएए वाला लाभ देने को आतुर है।
 मन विचलित हो गया जब जब समझा कि वो छोटे अखबारो कि जांच होगी ओर ज्यादातर उस जांच मे वो ही नपेंगे जो पंद्रह सालो के उपक्षित, सुखे ओर वनवास के बाद कांग्रेस कि सरकार मे खुश्गवार बरसात के ईन्तेज़ार मे थे
दुसरे नारंगी रंग कि कलम से नरोत्तम से फायदा उठाकर करोड़पति होगये ओर वो अब वर्तमान सरकार के राजदुलारे हो गये मंत्री को सुझ नही पड़ रही कि क्या करे कोन अपना हे, पराया है, यह फारमुला जनसंपर्क मंत्री को जिसने सुझाया है उसकि दुरअंदेश निशानेबाज़ी समझा कर ईसके पीछे कि क्रोनोलाजी को समझने का वक़्त हे~
.किन्ही जिन जिन अधिकारी एवं कर्मचारीयो  के नाम से समाचार पत्र निकलते हे उनकि जांच कोई सुप्रीम कोर्ट रिटायर्ड न्यायधीष से हो एवं जांच कर टाइटल केंसल किये जाये एसे सभी कर्मचारियों कि संपत्तियों कि जांच कि जाये जो तीन साल से अधीक समय से जनसंपर्क मे जमे हैं।
.पुर्व मे हुये तीन सो करोड़ रुपये के बेहिसाब विज्ञापन घोटाले के मामले मे एसआईटि जांच हो सिंहस्थ घोटाले कि भी जांच हो साल मे कितने लाख के विज्ञापन जारी हुये पारदर्शीता के साथ सार्वजनिक हो जनसम्पर्क विभाग में पदस्थ सरकार कि विपरीत विचार धारा के अधिकारी कि सोची समझी ऱणनीति के तहत काग्रेस सरकार के विज्ञापन के पेमेट रोक असंतोष को हवा देना जनसम्पर्क विभाग की स्वयं कि बनाई नीति से कॉंग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ मीडिया को खड़ा कर नये आदेश निकाल कर पत्रकार एवं सरकार को आमने सामने कर अधिकारियों ने अपने लिये नयी नवेली सरकार के साथ नया सेफसाईड सुकुन हांसिल कर लिया कॉंग्रेस से मीडिया की दूरियां बढ़ेंगी ईसक‍ा नुकसान परस्पर संवाद मे गतिरोध के बादल छा जायेंगे,
एक बात ओर कहुंगा जब तक जनसंपर्क मे लंबे समय से बेठे अधिकारी कर्मचारी डटे रहेंगे जो पुर्व सरकार के हित मे विपक्ष यानी कांग्रेस को घेरने के लिये जिन अखबारो को ओबलाईज़ का काम करते थे जब तक जनसंपर्क मे रहेंगे
एक तरफ संदेश जा रहा है 
*क्या पत्रकारो का अपमान कर रही हेै कांग्रेस* 
क्या वाकई फील्ड के पत्रकार खुद अपनी बात नहीं बनाएंगे।
पत्रकारिता की गरिमा समाप्त हो रही है तकनीकि बारिकियो के साथ एक बात गोर करने वाली हे कि जनसंपर्क के फ़रमान एनआरसी जेसा करके सारे अखबारों को डिटेंशन सेंटर कि राह दिखा चुका है
इससे दुःखद और अब क्या होगा ? इस पेशे को बदनाम करने वाली जमात का बहिष्कार के अलावा क्या रास्ता हो सकता है उस पर भी सोचना चाहिए! आश्चर्य तो इस बात का है कि चुप रहने वाले ही लोग इसे सम्मान मानते हैं।खैर वक्त है बदलाव का! आपको साधुवाद न्युज S ASRAR ALI


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<no title>*ब्रेकिंग* भोपाल कलेक्टर का आदेश। केंद्र द्वारा दी गयी राहत का भोपाल में नहीं होगा असर। केंद्र ने दी है दुकानें खोलने की छूट। राज्यों को दिए हैं दुकान खोलने के मामले में फैसला लेने का अधिकार। भोपाल कलेक्टर ने आज आदेश जारी करके कहा कि 3 मई तक कोई छूट नहीं रहेगी। 3 मई के बाद समीक्षा करके आगे का फैसला लिया जाएगा।
*पत्रकारों के लिए क्या....?* केंद्र सरकार और प्रदेश की सरकार के द्वारा जिस तरह बीपीएल कार्ड धारियों, श्रमिकों और किसानों इत्यादि को जिस तरह से राहत राशियां एवं मुफ्त खाद्य सामग्री प्रदान करने की घोषणा की गई है, क्या इसी तरह पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने वाले पत्रकारों के हितों का भी सरकारों के द्वारा ख्याल नहीं रखना चाहिए? देश में आज नाम मात्र के बराबर अपने जोखिम भरे कार्यों के बदले पारितोषिक प्राप्त करने वाले पत्रकारों की संख्या नगण्य है। *ज्यादातर पत्रकार बगैर किसी सैलरी या मेहनताने के काम करते हैं,* ऐसी स्थितियों में उन पत्रकारों को भी अपने घर परिवार के भरण-पोषण विशेषकर ऐसी विकराल परिस्थितियों में तो और भी कठिन चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। *क्या ऐसी स्थितियों में हमारी सरकारों को पत्रकारों के प्रति भी संवेदनशील नहीं होना चाहिए??* पत्रकारिता जैसे चुनौतीपूर्ण कार्य करने वाले उन सभी पत्रकारों को हमारी सरकारों के द्वारा कुछ ना कुछ राहत राशि प्रदान कर संबल प्रदान करने की आवश्यकता है। जिससे कि आने वाले समय में लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ और मजबूती के साथ खड़ा होकर अपनी जिम्मेदारियों को भरपूर तरीके से कार्यों का निर्वहन कर सके। कहते हैं *भूखे भजन न होय गोपाला, जा धरी तुम्हारी कंठी माला।।* भूखे पेट समाज सेवा नहीं होती, समाज को सजगता प्रदान करने हेतु अपनी कलम के माध्यम से प्रेरित कर लोगों को आगाह करने वाला लोकतंत्र का यह *चौथा स्तंभ आज पूरी तरह उपेक्षा का शिकार* है। जिस पर हमारी *सरकारों एवं जनप्रतिनिधियों को ध्यान देने की आवश्यकता* है । 🙏🏻🙂🙏🏻🤷🏻‍♂✒️✒️
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