रात के अंधेरे में दरवाजा तोड़कर नींद में किया था गिरफ्तार, 10 दिन बाद बोली यूपी पुलिस- नहीं मिले कोई सबूत*

*रात के अंधेरे में दरवाजा तोड़कर नींद में किया था गिरफ्तार, 10 दिन बाद बोली यूपी पुलिस- नहीं मिले कोई सबूत*
Updated: Jan 03 2020 08:53 AM | Written by अरण्य शंकर


भारत में सीएए लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार भी किया है। एक ऐसा ही वाक्या उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का है। यहां पुलिस ने रात के अंधेरे में कथित तौर पर घर का दरवाजा तोड़ कर गिरफ्तार किया था लेकिन किसी तरह का सबूत नहीं मिलने की वजह से इन्हें 10 दिनों बाद रिहा कर दिया गया। गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी बेरहमी से पिटाई की गई और पानी मांगने पर पेशाब पीने को कहा गया।


30 दिसंबर की सुबह 7 बजे 24 साल के अतीक अहमद, 53 साल के मोहम्मद खालिद, 26 साल के सोहैब खालिद और सरकारी कार्यालय में काम करने वाले एक क्लर्क को मुजफ्फरनगर जेल से रिहा किया गया। उनकी रिहाई गिरफ्तारी के 10 दिनों बाद हुई। गिरफ्तारी के बाद पुलिस को 20 दिसंबर को शहर में हुए हिंसा के मामले में इन सब के खिलाफ किसी तरह का सबूत नहीं मिला।


शहर के एसपी सतपाल अंतिल ने कहा कि सभी चार लोगों को सीआरपीसी की धारा 169 के तहत रिहा किया गया क्योंकि पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उनके खिलाफ किसी तरह के सबूत नहीं मिले। उन्होंने कहा, "हम काफी निष्पक्ष तरीके से अनुसंधान कर रहे हैं। हम पाते हैं कि यदि कोई पत्थरबाजी और दंगे का हिस्सा नहीं था तो हम उसी अनुसार आगे का कदम उठा रहे हैं।"


यह पूछे जाने पर कि व्यक्ति को उसके घर से क्यों उठाया गया, अंतिल ने कहा कि क्लर्क के घर के छत से पत्थर फेंके गए थे और यह संदेह था कि अन्य लोग उस भीड़ का हिस्सा थे। एसपी ने पीटने, खाना और पानी न देने के आरोप को पूरी तरह खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, "दंगे को नियंत्रित करने वक्त ही लाठीचार्ज की गई थी। मानवाधिकारों का पूरी तरह से ख्याल रखा गया।"


क्लर्क ने कहा कि पुलिस द्वारा उठाए जाने से 10 दिन पहले से ही उनकी अग्नि परीक्षा शुरू हो गई थी। वे जिला रोजगार कार्यालय में कलर्क हैं। उनकी उम्र 50 साल के आसपास है। 20 दिसंबर की रात वे अपने 20 साल के बेटे के साथ घर में सो रहे थे तभी पुलिस ने कथिततौर पर उनके घर को दरवाजा तोड़ दिया और उन्हें उठा कर ले गई। नाम न बताने की शर्त पर कलर्क पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, "रात के करीब 10.30 बज रहे थे। मैं सो रहा था। कुछ ही समय बाद मेरे दरवाजे को तोड़ा जा चुका था। करीब 60 पुलिस वाले और 50 अन्य स्थानीय लोग उनके घर का सारा सामान तोड़ रहे थे। मेरे पैर और कंधे पर लगातार लाठी से प्रहार किया जा रहा था।"


वे आगे कहते हैं, "हमें कुछ नहीं बताया गया। मुझे और मेरे बेटे को घसीटते हुए पुलिस की गाड़ी में बैठाया गया और थाने ले जाया गया। हमारे फोन ले लिए गए। वहां बैरक में कम से कम 100 लोग थे। पुलिस का व्यवहार पूरी तरह अमानवीय था। हमें खाना और पानी तक नहीं दिया गया। जब मैंने पानी मांगा तो उन्होंने मुझे खुद का पेशाब पीने को कहा।"


क्लर्क के बेटे ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया है और फिलहाल दिल्ली के एक होटल में इंटर्न हैं। 21 दिसंबर को कोर्ट में पेशी के बाद दोनों बाप-बेटे को जेल में भेज दिया गया। वे कहते हैं, "वहां हमें किसी तरह की समस्या नहीं हुई। मुझे जख्म को सही करने के लिए दवा भी मिली लेकिन ये जख्म कैसे हुआ, मुझे नहीं पता। मैं सिर्फ अपने काम पर जाता हूं और वापस घर लौट आता हूं। न तो मैंने और न मेरे बेटे ने कभी किसी प्रदर्शन में हिस्सा लिया है। यहां तक कि जिस दिन मेरी रिहाई हुई, मैं सीधा ऑफिस गया।" फिलहाल उनके बेटे की रिहाई नहीं हुई है। वे कहते हैं, "मुझे नहीं पता कि वह कब बाहर आएगा।"


20 दिसंबर को शाम 4 बजे दिल्ली के जाकिर हुसैन कॉलेज में बीएससी के छात्र अतीक अहमद अपने पिता की मेडिकल रिपोर्ट लेने गए थे। रिपोर्ट में यह बात सामने आयी कि उनके पिता के क्रिएटिनिन का स्तर असामान्य रूप से अधिक था, जो किडनी में समस्या का संकेत दे रहा था। इसके बाद उन्हें तुरंत अपने पिता को मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी गई।


लगभग शाम 7 बजे अहमद अपने पिता मोहम्मद हारून (52) और अपनी मां रुखसाना के साथ मेरठ के लिए घर से निकल गए। उनके साथ हारून के भतीजे खालिद (53), उनकी पत्नी फिरदौस और साथ ही खालिद का बेटा शोएब (26) भी था। इस परिवार का शहर में स्टील का कारोबार है। इसी महीने शोएब की शादी भी होने वाली है। शोएब कहते हैं, "20 मिनट बाद पुलिसकर्मियों ने हमें मीनाक्षी चौक पर रोक दिया। उन्होंने हमें कार रोकने और उतरने के लिए कहा। वे विशेष रूप से अतीक और मेरे लिए इशारा कर रहे थे, और कह रहे थे 'यही हैं, इन्होंने ही पत्थरबाजी की है।"


हारून ने कहा कि उसे कार से बाहर जाने के लिए कहा गया था। वह कहते हैं, "उन्होंने मुझे कहा कि मैं रोगी नहीं हूं और मुझे इसे साबित करने के लिए कहा। हमने उन्हें सभी रिपोर्ट और कागजात दिखाए। मैं कांप रहा था, लेकिन उन्होंने हमें आगे नहीं जाने दिया।"


मुसलमान पाकिस्तान जाएं या कब्रिस्तान' मुजफ्फरनगर में बुजुर्ग का यूपी पुलिस का कोहराम
एनआरसी व सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के घर में यूपी पुलिस दबिश दे रही है। इस बीच आरोप लगे हैं कि पुलिस मुस्लिमों पर जमकर अत्याचार कर रही है। उनसे कहा जा रहा है कि मुस्लिमों के लिए सिर्फ 2 ही स्थान हैं। पाकिस्तान या कब्रिस्तान।


शोएब ने कहा, "कुछ पुलिस वालों ने सहानुभूति दिखाई थी लेकिन ज्यादातर लोगों का रुख सही नहीं था। वे हमारे आईडी कार्ड के लिए मांग रहे थे, महिलाएं गिड़गिड़ा रही थीं, लेकिन वे हमें घसीट कर पुलिस की बस में ले गए। उन्होंने हमें यह नहीं बताया कि हमें कहां ले जाया जा रहा है। आगे हम जानते हैं, हम पुलिस थाने में थे।"


इससे आगे वे कुछ कर नहीं सकते थे। घर के बाकी लोग वापस लौट आए। हारून को 21 दिसंबर को मुजफ्फरनगर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां से कई दौर की डायलिसिस के बाद 27 दिसंबर को उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। खालिद ने कहा कि थाने पर 100 से अधिक लोग थे। क्लर्क के विपरीत, खालिद कहते हैं कि उन्हें पानी की पेशकश की गई थी हालांकि कोई भोजन नहीं दिया गया और पिटाई भी नहीं की गई थी। हालांकि, शोएब ने दावा किया कि उन्होंने दूसरों को पिटते हुए देखा है। वे कहते हैं, "अंतत: यह पुलिस ने हमें छोड़ दिया है, इसलिए हम उनके आभारी हैं, लेकिन जो कुछ भी हो रहा है वह सही नहीं है। उन्हें केवल उन लोगों को गिरफ्तार करना चाहिए जिनके पास उनके खिलाफ सबूत हैंcapacity news 


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