*CAA विरोध-प्रदर्शन में यूपी पुलिस पर उठ रहे सवाल? एक ही घटना, एक ही थाना, पर दो FIR में पुलिसिया कार्रवाई अलग-अलग क्यों?*
Updated: Jan 02 2020 12:54 PM |
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उत्तर प्रदेश में हुए उग्र प्रदर्शन के दौरान दर्ज हुईं ये दो एफआईआर की कहानी है, जहां पुलिस की कार्रवाई में अंतर नजर आता है। एक एफआईआर कथित दंगों के लिए 17 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज होने से संबंधित हैं जबकि दूसरी 23 वर्षीय मोहम्मद शिरोज की हत्या से संबंधित हैं। संभल जिले में पुलिस जांच से संबंधित दस्तावेज ऐसा बताते हैं। इंडियन एक्सप्रेस को मिले रिकॉर्ड के मुताबिक पूर्व में पुलिस ने कथित हिंसा के विवरण का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण किया। घटनाओं का समय और 17 नामित व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत सात अलग-अलग आरोप लगाए गए। हालांकि शिरोज से जुड़े दस्तावेज में किसी तरह का विवरण नहीं मिलता। हत्या के मामले में कुछ नहीं है और आईपीसी की धारा के तहत सिर्फ एक सेक्शन में केस दर्ज किया गया है।
ऐसा तब होता है जब दोनों एफआईआर 24 घंटे के भीतर हुई घटनाओं से संबंधित हैं। ये संभल के एक ही मोहल्ले में और एक ही कोतवाली संभल पुलिस स्टेशन में दर्ज हैं। उल्लेखनीय है कि 17 लोगों के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर में पुलिस ने स्वीकार किया कि इन लोगों ने फायरिंग की और पुलिस कर्मचारियों को इस आधार पर क्लीन चिट दे दी कि भीड़ को नियंत्रित करने और आत्मरक्षा के चलते के लिए फायरिंग की गई। 17 लोगों के खिलाफ दंगा फैलाना का आरोप लगा है।
हालांकि शहरोज से जुड़ी एफआईआर मामले में पुलिस ने कहा कि किसी भी आरोपी की पहचान नहीं हुई है। पुलिसकर्मियों की तरफ से हुई गोलीबारी में शहरोज गोली लगने से घायल हो गए थे और 20 दिसंबर को उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। (उग्र प्रदर्शन के दौरान जिले में दो लोगों की मौत हुई थी।) इस मामले में पुलिस ने आईपीसी की धारा 304 के तहत केस दर्ज किया ना की धारा 302 के तहत। खास बात है कि शिरोज हत्या के मामले में उनके चाचा मोहम्मद तसलीम द्वारा दर्ज की गई शुरुआती शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया सिर्फ एक पैराग्राफ का दस्तावेज है।
एफआईआर बताती है, 'मेरा भतीजा शहरोज, जोकि एक ट्रक ड्राइवर है, काम से घर से बाहर गया था। चंदौसी चौराहा पर वो घायल अवस्था में पड़ा मिला। उसे हसीना बेगम हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां से बाद में सरकारी हॉस्पिटल ले जाया गया। सरकारी हॉस्पिटल में उसे मृत घोषित कर दिया गया।'
बता दें कि शव को सरकारी हॉस्पिटल में ले जाने के बावजूद एफआईआर में उस डॉक्टर का कोई जिक्र नहीं है जिसने शिरोज के शव की जांच की, उसकी मृत्यु का समय और हत्या का कारण आदि। एफआईआर में सिर्फ हत्या से संबंधित प्राथमिक जानकारी थी। एफआईआर में चंदौसी चौराहा पर किसी भी गवाह या किसी पुलिस बल की तैनाती का कोई उल्लेख नहीं किया गया है, जहां शिरोज को गोली मारी गई थी। खबर लिखे जाने तक शिरोज के परिवार में किसी को भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है। मामले में संभल के एसपी यमुना प्रसाद का पक्ष नहीं जाना जा सका हैcapacity news