वह काली रात 2 - 3 दिसंबर की, वह रात कयामत की रात थी ।लोग बदहोशी से सड़कों पर दौड़ रहे थे ,जिसमें जितनी हिम्मत थी वह पूरा जोर लगाकर चल रहा था या दौड़ रहा था,

*न इतरा अगर बच गया*   
     *भोपाल गैस त्रासदी* 
          *के हादसे से ।* 
 *लाशें बिछी थी सड़को पर ।।* *याद कर वो काली रात 2* 
        और 3 दिसंबर की
           लड़ो लड़ाई अपने
                  इलाज की 
वह काली रात 2 - 3 दिसंबर की, वह रात कयामत की रात थी ।लोग बदहोशी से सड़कों पर दौड़ रहे थे ,जिसमें जितनी हिम्मत थी वह पूरा जोर लगाकर चल रहा था या दौड़ रहा था, कुछ कदम चलना भी  मुश्किल था ,लोग कीड़े मकोड़ों की तरह सड़कों पर गश्त खा खाकर गिर रहे थे, यह मंजर बिल्कुल ऐसा था जैसे मच्छर मारने की दवा छिड़कने के बाद मच्छर नीचे जमीन पर गिर जाते हैं । वैसे ही भोपाल वासी मच्छरों की तरह गिर रहे थे ,और  दम तोड़ रहे थे ,सबकी आंखों के सामने मौत नंगा नाच कर रही थी अब हम गैर सरकारी आंकड़े देखें एक ही रात में भोपाल के 24000 लोगों ने सड़कों पर दम तोड़ा था  , यूनियन कार्बाईड के कारखाने के पास की बस्ती पूरी तरह शमशान एवं कब्रिस्तान में बदल गई थी ,लोगों जो घरो से नहीं निकल पाए थे ,उन सब लोगों ने अपने घरों में ही दम तोड़ दिया था  ,घर के दरवाजे बंद थे ।   और जो लोग इस घटना से बच गए थे ,वह भी जिंदा लाश की तरह , भोपाल से कई किलोमीटर दूर  जंगलों में , गांव में पड़े हुए थे ,ना खाने को खाना, न पीने को पानी ,जेबे  भी खाली और छोटे-छोटे बच्चे भूख के मारे रो रहे थे ,अच्छे-अच्छे पैसे वालों ने लोगों से भीख मांग कर अपने बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था की थी । 
इस घटना को लगभग 35 वर्ष बीत गए ,भोपाल गैस पीड़ितों में से कई गैस पीड़ितों ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ,मगर जो लोग बचे हैं ,उनकी यादों पर धूल जम गई है । साथियों अपनी यादों पर से धूल हटाओ फिर से 2 और 3 दिसंबर की रात की तरह सड़कों पर निकलो और अपना और अपने परिवार के लोगों के इलाज के लिए संघर्ष करो । 
भोपाल मेमोरियल अस्पताल गैस पीड़ितों के लिए स्थापित किया गया था ,आज यह अस्पताल वीरान पड़ा है ,यहां पर इलाज के नाम पर भोपाल गैस पीड़ितों के साथ मजाक हो रहा है ,ना यहां पर डॉक्टर ,ना यहां पर दवाइयां सोनोग्राफी की मशीनें खराब पड़ी  हुई हैं ,अगर कुछ मशीनें चल रही है, तो हफ्तों में सोनोग्राफी का नंबर आता है , पीड़ित का जब तक उसका नंबर आए वह जीवित रहे या ना रहे ,कितनी तकलीफ हो ,कितनी ही बीमार हो ,मगर सोनोग्राफी होगी कई हफ्तों के बाद । अगर किसी को ऑपरेशन होना हो ,तो वहां के अधिकारी एवं कर्मचारियों के पास एक ही   
 राटा रटाया जवाब होता है ,अभी डॉक्टर नहीं है ,जब डॉक्टर आएंगे ,जब आपको ऑपरेशन की दिनांक दी जाएगी ,करोड़ों रुपए की मशीने है ,पर धूल खा रही है कई मशीनों के पुर्जे मशीनों से गायब हो चुके हैं ।
भोपाल मेमोरियल अस्पताल बना है गैस पीड़ितों के पैसों से ,और यहां पर भोपाल के गैस पीड़ितों के साथ वहां के कर्मचारियों द्वारा बदतमीजी करना एक आम बात हो गई है । 
*हम भोपाल के गैस पीड़ित इस* *भोपाल मेमोरियल* *अस्पताल से  जब अपना  इलाज* *की मांग मांगेंगे ।* 
 *एक अकेले  हमारा नहीं, सारे* *भोपाल के  गैस पीड़ितों के* *लिए इलाज मांगेंगे ।।*
Capacity News 


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