राष्ट्रीय / मध्य प्रदेश *"किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है” तीन दशक बाद प्रदर्शनकारियों के लिए 'हथियार' बन गई राहत इंदौरी की ये लाइनें*

राष्ट्रीय / मध्य प्रदेश
*"किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है” तीन दशक बाद प्रदर्शनकारियों के लिए 'हथियार' बन गई राहत इंदौरी की ये लाइनें*


*"किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है" यह भावना देश में तीन दशक पहले महसूस की गई थी। जो इस एक लाइन में बोली जाती थी। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में यह एक लाइन प्रदर्शकारियों का नारा बन गया। बता दें कि इस नारे का एक पोस्टर सीएए और भारतीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध करे रहे प्रदर्शनकारियों के हाथों में गया। इस नारे को इसी साल जून में तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने भी संसद में बोला था। अभिनेता अमाल पॉल और फिल्म निर्माता आशिक अबू ने इसका मलयालम में अनुवाद कर एक पोस्टर इंस्टाग्राम पर डाला और शिवसेना नेता संजय राऊत ने भी इसे ट्वीट किया है। इस लाइन का प्रयोग पिछले कुछ वर्षों में मुशायरा शो में खूब हुआ है।*


*"अगर ख़िलाफ़ हैं": राष्ट्रीय राजधानी से सैकड़ों मील की दूरी पर स्थिति मध्यप्रदेश के इंदौर में कवि राहत इंदौरी रहते हैं। वह तो नागरिकता संशोधन कानून पर चुप है लेकिन उनकी गजल चुप नहीं हैं। यह लाइन राहत इंदौरी कि लिखी गजल "अगर ख़िलाफ़ हैं" से ली गई है और जो अब लोगों के विरोध जताने का नारा बन बन गई है। इंदौरी ने कहा कि, “मैंने यह गजल लगभग 30-35 साल पहले लिखी थी, हालांकि मुझे वह साल या वह प्रसंग अभी याद नहीं है। मैंने इस गजल को कई मुशायरों में सुनाया है और इसके बारे में भूल भी गया था, लेकिन मुझे नहीं पता कि पिछले तीन से चार सालों में ऐसा क्या हुआ है कि जैसे फसल फिर से उगती है, ये शब्द फिर से बाहर आ गए हैं।”*


*ये पंक्तियां किसी धर्म विशेष के लिए नहीं हैं: अब जहां भी मैं जाता हूं, लोग मुझसे यह सुनाने का अनुरोध करते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसे अक्सर एक मुस्लिम द्वारा एक शेर के रूप में लिया जाता है। ये किसी इज़्ज़ब का शायरी नहीं है (ये पंक्तियां किसी धर्म विशेष के लिए नहीं हैं)। वे सभी के लिए हैं। मैंने इस शायरी को उर्दू कवि और भारत के नागरिक के रूप में लिखा था। यह देश किसी व्यक्ति विशेष, पार्टी या धर्म की संपत्ति नहीं है। जैसा कि गजल कहती है कि, "सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है"। लेकिन मुझे खुशी है कि लोग अपनी मांगों को उठाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। वे अपनी आवाज में वजन जोड़ने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। देश में शांति के लिए एक आह्वान के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।"*


*हिंदू - मुसलमान दोनों यहीं के है:  69 वर्षीय इंदौरी ने कहा कि, " मेरा जन्म आजाद भारत में हुआ था, मैं अपने पूर्वजों के बताए हुए विवरण पर भारत में रहता हूं और मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि हमारे पूर्वजों के सपनों जैसा ही भारत रहे।" मैंने इस उम्मीद में लिखता हूं कि ये चारों ओर घूमेगा। अपने करियर के माध्यम से जब भी देश में चीजें ठीक नहीं थीं, मैंने इस उम्मीद में लिखा कि वह चारों ओर फैलेगा। आज भी मैं फिर से दोहराऊंगा कि "ना हिंदू कहीं का, ना मुसलमान कहीं का, दोनों यहीं रहेंगे, ये दोनों यहीं के हैं।"*


40 से अधिक फिल्मों के लिए गीत लिखे है: बता के कि इंदौरी महेश भट्ट की सर (1993), विधु विनोद चोपड़ा की मिशन कश्मीर (2000) और राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई एमबीबीएस (2003) सहित 40 से अधिक फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं। उन्होंने टी-सीरीज़ के गुलशन कुमार के साथ पहली टीम बनाकर मुंबई में अपनी पारी की शुरूआत की थी ।


*"नफरत की फसल काटते जाए, उसकी फसल उगती जाती है ": राहत इंदौरी ने नागरिता संशोधन कानून पर कहा कि यह दुखद है किसी ने कभी नहीं सोचा था कि इस तरह के विभाजन को लाया जा सकता है। आज किसी को लग सकता है कि एनआरसी केवल मुसलमानों को प्रभावित करेगा, लेकिन कल यह दूसरों को भी प्रभावित करेगा। यह कभी खत्म नहीं होगा। उन्होंने कहा, " नफरत की बुनियाद अगर एक बार पड़ जाती है, तो आप काटते जाए, उसकी फसल उगती जाती है।*capacity news 


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