सोये हुये भोपालीयों तुमने एक हीरे कि क़दर नही की।
जिस फरिश्ते नुमा ईन्सान कि मोत ईलाज अभाव मे हुयी है ये राजधानी भोपाल कि स्वास्थ्य सेवाओ मे सरकार कि नाकामी व गेर जिम्मेदारियों कि पोल खोलती हुयी तस्वीर है
साथ ही
राजेंद्र नगर मे अब्दुल जब्बार साहब का मकान कि हालत देख कर अंदाज़ा हो गया होगा कि ईस ईमानदार योद्धा ने अपने परिवार के लिये क्या कमाया होगा ओेर सरकारो ने ईस आदमी के लिये क्या किया होगा
जबकी एक जनप्रतिनिधी अपने कार्यकाल मे बिना किसी लागत के बहुत कुछ जमीन जायदाद मालदोलत कमाने के साथ परिवार के सदस्यों को सरकारी नोकरियो मे लगवा भी लेता है।
लंबी लड़ाई व गेस पीड़ितो के हक मे संघर्ष के नतीजो के बाद कुछ नये एन्जीओ के संचालक जो बाद मे मेदान मे दिखे वो अब्दुल जब्बार साहब के संघर्ष कि रेखा को छोटा नही कर पाये जो सहुलतो कि मांग करने के लिये सतत संघर्ष कि ग्वाह ग्यारह पीआईएल अब्दुल जब्बार साहब ने सुप्रीम कोर्ट लगा रखि थी सात हज़ार से अधिक लोगो को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण दिलाया था 84 के बाद से निरंतरता से यादगारे शहाजहानी पार्क मे हर हफ्ते मीटिंग सतत संघर्ष कि ओर ईशारा करती है उसी यादगार शहाजहानी को कुछ लोग उजाड़ना चाहते थे ये एक सदमा था जिसे बचाने के लिये उनका साथ जिन्होने दिया या उनकि सहयोग किया उनकी भलमानसता हे।
गेस पीड़ितो के हक मे बहुत कुछ किया उन्होने उनका सोना उठना बेठना तो गेस पीड़ितों का दर्द ही था लेकिन कुछ एन्जीओ जो उन्हे कही न कही छोटा साबित कर पीछे धकेलना चाहते थे सरकार उनके खाते जरुर तलाशे ओर अगर सरकार कि नीती मे कुछ कमी दिखे तो जनता उन एनजीओ ओर सरकार के जनप्रतिनिधियो के रिश्तो की भी जांच कर खुद फेसला करे।
जो संघर्षरत योद्धा अपने क्षेत्र के नेताओ कि आंखो कि किरकिरी शायद ईसलिये हो कि उन नेताओ को शायद ईस बात का तो डर हो कि वो कही राज्यसभा या लोकसभा के मेदान् मे न कूद जाये अगर किसी पार्टी ने टिकट दे दिया होता तो निर्विरोध जीते हुये प्रत्याशी थे क्योकि वो लाखो गरीब ओर यतीम बेवाओ के बाप भाई बेटे के रुप मे गेसपीड़ितो कि आवाज़ थे
एसे मसीहा थे जो लाखो परिवार गेसकांड मे तबाह व बरबाद हुये उन परिवारो के बचे हुये विक्टिम सदस्यो को सहारा देने वाले फरिश्ते सिफत अब्दुल जब्बार ही थे
लेकिन किसी राजनेतिक पार्टी ने उनको जीते जी वो सम्मान नही दिया जिसके वो शतप्रतिशत हकदार थे और तो ओर क्षेत्रीय सांसद को समय नही था उनकी कमला नेहरु मे बीमारी का हाल जानकर बेहतर ईलाज कि व्यवस्था करा सके ।
अंतिम समय मे जब उनकी आर्थिक व जिसमानी हालत दयनीय हुयी तो सोशल मीडिया व कुछ अखबारो का दिल पसीजा उनके लिये लिखा फिर दिग्विजय सिंह जी ओर लोग जीते जी जरुर पहुंचे लेकिन जब तक बहुत देर हो चुकी थी।
वो सायादार पेड गिरा तो ज़मीन को
सूरज की तेज़ धूप का एहसास हो ही जायेगा....